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स॒त्या स॒त्येभि॑र्मह॒ती म॒हद्भि॑र्दे॒वी दे॒वेभि॑र्यज॒ता यज॑त्रैः । रु॒जद्दृ॒ळ्हानि॒ दद॑दु॒स्रिया॑णां॒ प्रति॒ गाव॑ उ॒षसं॑ वावशन्त ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

satyā satyebhir mahatī mahadbhir devī devebhir yajatā yajatraiḥ | rujad dṛḻhāni dadad usriyāṇām prati gāva uṣasaṁ vāvaśanta ||

पद पाठ

स॒त्या । स॒त्येभिः॑ । म॒ह॒ती । म॒हत्ऽभिः॑ । दे॒वी । दे॒वेभिः॑ । य॒ज॒ता । यज॑त्रैः । रु॒जत् । दृ॒ळ्हानि॑ । दद॑त् । उ॒स्रिया॑नाम् । प्रति॑ । गावः॑ । उ॒षस॑म् । वा॒व॒श॒न्त॒ ॥ ७.७५.७

ऋग्वेद » मण्डल:7» सूक्त:75» मन्त्र:7 | अष्टक:5» अध्याय:5» वर्ग:22» मन्त्र:7 | मण्डल:7» अनुवाक:5» मन्त्र:7


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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (देवी) दिव्यगुणयुक्त (सत्या) सत्यरूपा (सत्येभिः) सत्यवादियों से मान को प्राप्त (महती) बड़ी (महद्भिः देवेभिः यजता) बड़े-बड़े विद्वानों से वर्णित (यजत्रैः) याज्ञिक लोगों से सेवित (दृळ्हानि रुजत्) बड़े अन्धकार को दूर करनेवाली (उस्रियाणां प्रति) अधिकारियों के प्रति (गावः ददत्) किरणों को देनेवाली (उषसं) उषा की (वावशन्त) सब प्राणी कामना करते हैं ॥७॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में “उषा” का महत्त्व वर्णन किया गया है, क्योंकि विद्वान् लोग उषःकाल में ही परमात्मा की स्तुति करते, बड़े-बड़े याज्ञिक महात्मा इसी काल में यज्ञ करते, गोपाल लोग गौओं का सत्कार करते और सब कर्मकाण्डी पुरुष उषःकाल की इच्छा करते हैं, क्योंकि इसी काल में सब वैदिककर्मों का प्रारम्भ होता है अर्थात् सन्ध्या-अग्निहोत्र, जप, तप आदि सब अनुष्ठान इसी काल में किये जाते हैं, इसलिए यह उषा सब के कामना करने योग्य है ॥७॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (देवी) दिव्यगुणयुक्ता (सत्या) सत्यरूपा (सत्येभिः) सत्यवादिभिः वर्णिता (महती) बृहती (महद्भिः देवेभिः यजता) (दृळ्हानि) निविडानि तमांसि (रुजत्) छिनत्ति (गावः) रश्मयः (ददत्) प्रकाशं ददत् अन्धकारविनाशाय (गावः ददत्) किरणप्रदा भवन्तीत्यर्थः, एवंविधा (उषसं) तामुषसं सर्वप्राणिनः (वावशन्त) वाञ्छन्ति ॥७॥